Sunday, 8 September 2013
चल॓ जो पग थक॓ नही
थक॓ जो पग चल॓ नही.
पुकारती है आधियाँ. पुकारता है झझँवात..
सियाहियो स॓ लड. रहा हैरौशनी काजलपृपात/
पृलय भल॓ ही मोड. पर .
खडा. हो राह रोक कर.
न रुक सक॓ हजार सर.
सहसत्र अगनि पुजँ म॓..
ढला दलित काअश्रुपात./
बढ, रहा है चीरन॓ को,ऊचँ नीच पक्षपात/
धरा क॓पुत्र मर रह॓ है ख॓तियाँ सुलग रही/
है भुखमरी म॓ॱ बैल हल खडी. फसल धधक रही,
न अब सह॓ग॓ॱ रकतपात काल का कराल घात.
असिथयोँ को चूर कर चुका भल॓ हो वजृ पात,/
कयोँ न हम तन॓ रह॓
कयोँ झुुक॓ रुक॓ रह॓.
नसोॱ नसो म॓ॱ है भवरँ .
उबल रहा है मौन जवर.
दमन का चकृ तो कर .निकल रहा है .नव पृभात.
सुबह क॓ नमृ सव॓द स॓ मिट॓ निशा का सनिनपात// #Hindi
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