Friday 10 August 2018

पर्यावरण और पालिथिन ...

पर्यावरण और पॉलिथिन….
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मनुष्य की भौतिक उपलब्धियों और उन्नति के चरमोत्कर्ष के मध्य लगातार ,साथ -साथ चलती हुई एक वस्तु उसे विरासत में स्वत:प्राप्त हो रही है !वह है खतरनाक स्तर से बहुत आगे तक प्रदूषित जलवायु और विकृत धरती का भयावह स्वरूप !साफ स्वच्छ वायु मंडल ,हरी भरी धरती ,निर्मल जलधारा ,शुभ्र आकाश हमारे आने वाले कल के लिए गौरव शाली वसीयत थी !अभी भी इसको संजोना हमारा अधिकार और कर्तव्य दोनों ही है,यह वह अमूल्य धरोहर है ,जिसके कारण हम जीवित है ,और हमारा अस्तित्व कम से कम अब तक तो बचा ही है !
लेकिन निकट भविष्य में विकास और विनाश की यह सह धर्मिता ,हमारे लिए अभूत पूर्व संकट का कारण बनने वाली है !बल्कि यह संकट हमारे दरवाजे तक आकर खड़ा हो गया है !,यह कहना अधिक युक्ति संगत है !आजकल प्लास्टिक का चलन,उसका उपयोग हमारे आधुनिक रहन सहन की ,एक अनिवार्य शैली के रूप में उभरा है ,जिस प्रकार हमारी मूल भूत आवश्यकताएँ वस्त्र ,भोजन,और आवास चिकित्सा है ,उसी प्रकार हमने दैनिक कार्य पद्धति में प्लास्टिक के उपयोग को स्वीकार कर लिया है !अपने इसी सुविधा वादी दृष्टिकोण के कारण ही हम आज प्लास्टिक पॉलिथिन की घनघोर समस्या से आक्रांत है !प्लास्टिक या पॉलि थिन एक नष्ट न होने वाला पदार्थ है ,जिसको केवल जला कर ही एक सीमा तक नष्ट किया जा सकता है ,किन्तु जलने से भी गंभीर विकिरण होता है !इससे जो कार्बन मोनो ऑक्साइड गैस निकलती है ,वह अत्यंत जहरीली और प्राणघातक होती है !यह गैस वायु मंडल में फ़ैल कर ओजोन परतों को सीधे नुकसान पहुँचाती है !यह प्लास्टिक ,पॉलीथिन, डिस्पोजल ग्लास प्लेट आदि धरती में दबाने से हजारो साल तक नष्ट नहीं होते !और उसी स्थिति में पड़े रहते है ,इसके अतिरिक्त यदि इसी पॉलीथिन में गर्म या खट्टी वस्तुएँ रखी जायें ,तो तुरंत ही रासायनिक प्रक्रिया प्रारंम्भ हो जाती है ,जिसके कारण खाद्य वस्तुएँ न खाने योग्य हो जाती है !परन्तु हमारी अज्ञानता या सुविधावादी संस्कृति या लापरवाही हमें आँख बंद किये रहने पर मजबूर करती है !
गाँवो देहातो व कल कारखानों में, मजदूर वर्ग रिक्शाचालको, या अन्य निम्न वर्ग ,निम्न मध्य वर्ग की रोजमर्रा की जिंदगी ,पॉलीथिन के पाउचोंमें चाय भर कर लाने ,ले जाने से ही शुरू होती है !वे बिलकुल नहीं जानते ,कि वे अपनी सेहत के लिए कितना बड़ा खतरा मोल ले रहे है!यदि यह कहा जाये ,कि प्लास्टिक या पॉलीथिन हमारी मानवता को विनाश के कगार पर खड़ा कर रही है ,तो बिलकुल भी अतिशयोक्ति नहीं होगी ! पॉलीथिन सीवर व नालियों में फंस कर भयंकर जल अवरोध ,रोग व बीमारी फैलाती है !गायेँ इस पोलिथिन को खाद्य वस्तुओं के साथ खाकर ,प्रतिदिन दर्द नाक मौत मरती है !वह मरने से पहले अत्यधिक तड़पती है ,और असहनीय दर्द झेलती है !पेट में जाकर ठोस आकर लेलेने वाली पॉलीथिन गायों के ऑपरेशन में ,गेंद की तरह या फुट बाल की तरह कठोर बन कर जब बाहर निकलती है ,तो देखने वालो की आँखे भर आती है !लोग पॉलीथिन में खाद्य वस्तुएँ रख कर गांठ लगा कर सड़क पर फेंक देते है ,और भूखी गाएँ उन्हें खा लेती है ,फिर दर्दनाक मौत का इंतजारकरती है !
प्रवासी पक्षियों की मॄत्यु का बड़ा कारण भी नदी में फैला कचरा ,प्लास्टिक व् किनारे पर फंसे पॉलीथिन में खाद्य पदार्थ ही है !यही पॉलीथिन व् प्लास्टिक खेतो में दब कर उसकी उर्वरक शक्ति जो क्षीण करता है !बंजर जमीनों के नीचे बड़े पैमाने पर मिले पॉलीथिन इस बात का प्रमाण है ,कि हम अपने ही हाथों खुद को तबाह कर रहे है !इसके अतिरिक्त समुन्द्र में फेंका जाने वाला असंख्य परमाणु कचरा ,समुन्द्री वनस्पतियों व ज़ीव जन्तुओं का जो विनाश कर रहा है,उसके ही परिणाम प्राय: समुंद्री लहरों पर ,मछलियों का मृत पाया जाना ,और नाना दुर्लभ प्रजातियों का विलुप्त होते जाना है !सुनामी जैसी भीषण आपदाओं का आना भी गंभीर पर्यावरण दोष की ओर संकेत करता है !
फ़्रांस के लोगो का मनपसंद भोजन मेंढक ,वहाँ के साधारण से साधारण स्थानो पर, हर वक्त मौजूद रहता है !क्योंकि सम्पूर्ण विश्व से फ़्रांस मेंढको का आयात करता है !मेंढको को भारी मात्रा में बाहर भेजने के कारण ,ही कुछ वर्षो पूर्व कोलकाता के देहात में फैले खेतो में ,मच्छरों व कीट पतंगो की भरमार हो गई ,जिसको काबू में करने के लिए बेतहाशा कीट नाशको का प्रयोग करना पड़ा! फलस्वरूप सारी धरती बंजर नाना प्रकार की खेतिहर समस्याओ से ग्रस्त हो गई !अंत में मेंढको के पुन: सरंक्षण का ही उपाय फिर अपनाना पड़ा !
तेजाबी बारिश ,कहीं सूखा ,कही बाढ ,कहीं भूस्खलन ,बढती बेतहाशा गर्मी ,पर्यावरण के भयानक असंतुलन की घंटी लगातार बजा रहे है ,लेकिन अंधाधुंध वनों का दोहन व प्राकृतिक संपदाओ को अपनी वसीयत समझने की भूल करने वाला मनुष्य, न जाने कौन सी विनाश कारी नींद में सो रहा है हिमालय पर लगभग ११,००० ग्लेशियर है ,जिनके कारण वह दुनिया की सबसे बड़ी पानी की मीनार कहलाता है ,इनमें से ज्यादातर ग्लेशियर पिघल रहे है !अनुमान है ,कि हिन्दुओ का प्रमुख गोमुख ग्लेशियर २०३५ तक पूरी तरह समाप्त हो जायेगा ! बाकी अन्य ग्लेशियर जो आगे पीछे अपना अस्तित्व खोने की, कगार पर पहुँचते जा रहे है !उनके कारण हर साल १०-१२ मीटर तक भूमि गत पानी का स्तर घटता ही जा रहा है ! प्रतिवर्ष खतरनाक गति से निरंतर सुरसा के मुख की तरह बढने वाली आबादी ,और दुगने चौगुने होते वाहनों के शोर ने सडको को हिला कर रख दिया है !ऊपर से प्रत्येक खाद्य पदार्थो में मिलावट वह भी रासायनिक वस्तुओ की ! पशुचर्बी ,निरमा ,कास्टिक सोडा,जैसी चीजे सभी मनुष्यों के सेहत के लिए गंम्भीर खतरा है !यह जानलेवा समीकरण महज घनघोर बाजारीकरण और क्रूर व्यावसायिकता की ही देन है ! कुल मिला कर धुंए से काले होते आकाश ,और जन-जन की दैनिक किल्लतो का ,धरती की बदहाली का कोई हल निकट भविष्य में बिना जन जागरण के ,और कठोर क़ानूनी शिकंजे के सामने आता नही दिख रहा! अब केवल आवश्यकता है , ठोस कदम की ,और एक विशाल जनान्दोलन की !जो महज पॉलीथिन ही नहीं, पूरे पर्यावरण की सुरक्षा के लिए उठ खड़ा हो !कपडे के थैले तो पॉलीथिन का एक श्रेष्ठ विकल्प है ही ,पर और भी उन्नत शोध की आवश्यकता है,अधिक विकल्पो की तलाश के लिए !जन जागरूकता का कोई भी छोटा -छोटा अभियान इस दिशा में एक बड़ा कदम बन सकता है -

शस्य श्यामला सुजला सुफला धरा बनाएँ ,
आओ बढ कर आज प्रकृति से हाथ मिलायें !

मैली गंगा यमुना क्या? अगली पीढी को हम देंगे
जहर भरे नभ को ,सूरज का घुटता सा सपना देंगे ?

सर्व नाश की लिखी कथा को चलो मिटाएँ ,
आने वाले कल को ,भय से मुक्त कराएँ !

बंजर होती धरती को, यदि रोक सको तो रोको ,
महानाश के अगले पल को ,टोक सको तो टोको !

तारे सूरज चाँद गवाही ,देगा यह आकाश दुआयेँ
हरे भरे खेतो की माटी,रोग शोक को दूर भगायेँ !

निकल न जाये,वक्त कंही यह बात सुनो ,
आसपास से विष की मोटी परत चुनो !

थोड़ी हरियाली थोड़ी सी छाँव जुटाएँ
शायद बीच जाए यह धरती .चलो अभी से वृक्ष लगायें !!

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अवमूल्यन की त्रासदी !!
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आज देश की समस्त व्यवस्था ,चाहे वह राज नैतिक ,सामाजिक या आर्थिक हो ,अथवा किसी अन्य स्तर पर हो ,पूर्णत: पतनोन्मुखी  और नेतृत्व विहीन हो चुकी है !अनास्था की विभीषिका ने हमारी मानसिक, आध्यात्मिक चेतन सत्ता को सर्वथा विकृत और निष्क्रिय कर दिया है !मनुष्य यांत्रिक सभ्यता का अँधानुकरण करने वाला ,कठ पुतला मात्र बन कर रह गया है !इस पंगु विकास का मूल्य हमने मानवीय अनुभूति और संवेदना को जड़ बना कर चुकाया है !विनाश के कगार पर खड़े हुए हम ,यदि अब भी अपनी शाश्वत परम्परा के पुनुरुद्धार का ,नैतिक मूल्यों की अक्षय धरोहर को वापस लौटाने का ,सत्साहस और कालंजयी प्रयास करे ,तो बहुत संभव है ,कि अपनी खोई हुई गरिमा और महिमा ,हमारी जननी ,हमारी जन्म भूमि फिर से प्राप्त कर ले! यह कैसी विडंबना है ?यह कैसी त्रासदी है ?कि जगद्गुरु आर्यावर्त की कर्मठ ,मनस्वी ,महान संताने ,आज असहाय और निराश्रित बनी अन्य देशो से दया की, ज्ञान की भीख मांग रही है ! पग -पग पर दूसरो की कृपा कांक्षी है ! अकिंचन सी दूसरो की जूठन से अपने क्षत-विक्षत भिक्षापात्र को संपन्न करने की चेष्टा कर रही है !
निरंतर विदेशी आक्रमणों ने हमारे स्वतंत्र चिंतन की ओजस्विता हमसे छीन ली ! युगों -युगों की दासता ने ,हमारी मानसिकता को कुंठित और पददलित कर दिया ! तभी हम आज भी हिंदी जैसी राष्ट्र भाषा के होते हुए,अंग्रेजी की गुलामी में जकड़े हुए है !क् योंकि हमें स्वयं पर ,स्वयं की भाषा पर,स्वयं की योग्यता और बौद्धिक क्षमता पर, भरोसा ही नही है ! हमारा आत्म सम्मान बिक गया ! लम्पट विलासिता के मायावी आकर्षण ने हमारी चित्त वृत्तियों को स्वार्थी संकुचित करके ,पूर्णत:आत्म केन्द्रित बना दिया !
हम अकर्मण्य और परावलम्बी बन कर जीवित रहना चाहते है !चीन ,अमेरिका पर हम आर्थिक नीतियों ,आवश्यक वस्तुओं के लिए सदा निर्भर रहते हैं ! बजबजाती हुई आबादी काहिल ,काम चोर बनती जा रही है ,गरीबी भुखमरी में ज़ीना सीख गई है ! कालेज से लेकर फुट पाथ तक नशे की संस्कृति फ़ैल चुकी है ! सब्जियों ,फल और दूध से ज्यादा गौतम ,गाँधी के देश में मदिरा की खपत है ! हमारी पीढ़ी की पीढी रसातल में जाये तो जाये सरकार को क्या पड़ी है ! वोट लेकर नोट बनाने का खेल दशको से जारी है ! जवान होते बच्चे अपने माँ बाप को हिकारत से देखते है ! उन्हें पिछडा हुया या दकियानूस करार कर दिया जाता है ! नंगे पन और समलैंगिकता की जोरदार वकालत कर ने वाली ये पथ भ्रष्ट पीढी क्या देश को कोई सार्थक दिशा देने के लायक है ?अपनी ही संस्कृति और भाषा से जिसे वितृष्णा हो ,वह उसी का भला कैसे कर सकती है ? वैयक्तिक से सामूहिक स्तर तक निरंतर बढते हुए ,इस नैतिक अवमूल्यन ने ,सामाजिक व्यवस्था को अपने राक्षसी पंजे में दबोच लिया है ! और छट पटाती हुई भारतीयता की मंगलमयी चेतना मुक्ति की एक साँस के लिए पराधीन हो गई ! जीवन विजड़ित और अर्थ हीन हो गया ! लोक परम्परा अंधविश्वास और निरक्षरता के दलदल में फंसकर ,अपना वास्तविक हितैषिणी स्वरूप ही गवाँ बैठी ! उसका स्वस्ति संपन्न अस्तित्व ही लगभग विलीन हो गया !
वर्ण व्यवस्था की अवधारणा आज अपने विकृत अर्थो के साथ इतनी घिनौनी और जटिल बन चुकी है ,कि लोक कल्याण की दृष्टि इसका विनष्ट हो जाना ही सामयिक होगा ! धर्म की सहकारी उदारता ,असहिष्णु ,और हिंसक उन्माद में बदल गई है ! संप्रदाय वाद और अवतार वाद के पिशाच ने ,उसकी तेजस्विता को,समतावादी नीति को ,मानवतावादी रूप को इस सीमा तक,नष्ट भ्रष्ट कर दिया है ,कि धर्म आज अधर्म का पर्याय बन गया है ! जीवन में धर्म की भागीदारी ने मानव को मानव के रक्त का प्यासा बना दिया ! ईश्वर को टुकडों में बाँट कर धार्मिक कठमुल्लाओं ने ,अपनी वंचक प्रवृत्ति और षड यंत्रो को उसके पावन रूप की आड़ में ,सफल बनाने का कुचक्र रच रखा है ! इसीलिए मानवतावादी संधियों और समझौते के लिए सर्वत्र समर्पित ,भारतीय अन्तश्चेतना नाना आडम्बरों और संकीर्ण स्वार्थो की अनुगामिनी बनती गई !'विश्व बंधुत्व'और वसुधैव कुटुम्कम् की आदर्श वादिता ,मात्र नीति शास्त्रों के पृष्ठो की धरोहर बन चुकी है ! उसे जीवन में ढालने का अभ्यास ही नही हो सका ! मानव धर्म की उदार परिभाषा तो हम भूल गये,परन्तु व्यक्तिगत स्वार्थ धर्म की संकीर्णता और कुटिलता उसकी शिराओं में निरंतर प्रवाहित होती रही !व्यावहारिक जीवन में इसी दोहरे मानदंड को अपनाने की प्रवृत्ति बढती ही जा रही है ! तथाकथित 'शांति और सुरक्षा 'के नाम पर वैज्ञानिक प्रगति के दावो ने ,परमाणुविक अस्त्र शस्त्रों का विशाल संग्रह कर रखा है ! जो कभी भी दुनिया का हिरोशिमा नागासाकी से कई गुना अधिक सर्वनाश कर सकती है ,बल्कि यह कहना अधिक उपयुक्त है ,कि सर्वनाश के सारे साधन जुट चुके है ! इसी तरह औद्योगिक विकास के नाम पर जो आंकड़े उपलब्ध होते है ,वे विकास कम ,प्रदुषण की कहानी अधिक कहते है ! नदियों का न्यूनतम जल स्तर ,उनका सूखते जाना,उनके पानी का खतरनाक स्तर तक जहरीला होना ,हमारी संजीवनी शक्ति का ही विनष्ट होना है !पर हम है ,कि कुछ भी नहीं सोचते ! कितने अंतर्विरोधो और प्रवंचनाओं से परिपूर्ण है हमारा जीवन !देश का बु द्धिजीवी वर्ग जो जन चेतना का मार्ग दर्शक मसीहा कहलाता है ,अपने कर्तव्यों से पलायन कर रहा है ,सुविधा ,विलासिता भोगी इस वर्ग का ।एक बड़ा हिस्सा ,जो देश के चिंतन को एक नूतन व् निश्चित दिशा दे सकता था , युग को परिवर्तन के मोड़ पर खड़ा कर सकता था ,वह बौद्धिक व्यायामों ,शब्द जालों ,और तर्क शास्त्रों के नये हथियार गढने में लग गया है !सत्ताधीशों के प्रत्येक क्रिया कलापों को स्तुत्य और वरेण्य बनाने का ठेका इसी वर्ग ने ले रखा है !क् योंकि इसकी सरकारी प्रतिष्ठा भाषा के इस कुत्सित व्यूह में ही सुरक्षित रह सकती है !
प्रेस ,मीडिया आदि में पेड न्यूज का बढता चलन ,इनकी आदर्श वादी संहिता के लिए एक चुनौती है !जन तांत्रिक प्रणाली की सफलता का आधार ,जन समूह की जागरूक चेतना होती है ,और जब वही भ्रम ,अफवाहों की शिकार हो जाये ,तो व्यवस्था को हिटलर शाही होते कितनी देर लगेगी ?प्रेस को हर संकट कालीन स्थिति में अपनी अस्मिता और स्वतंत्रता को बचाए रखना चाहिए ,पर बात बात पर बिक जाने वाली ,मनोवृत्ति ,और नाना प्रकार की लिप्साएँ उनकी मार्ग अवरोधक बन जाती है ! जनता के शासन में जनता को गुमराह करने का अधिकार किसी को भी नही है,पर नासमझ जनता गुमराह होती रही है ,हो रही है ! देश की नौकर शाही व्यवस्था ,पूर्णत: उत्कोच धर्मी है ! नैतिक चारित्रिक पतन में आपद मस्तक डूबी हुई, यह देश की सर्वोच्च कार्यप्रणाली अंग्रेजी भाषा ज्ञान ,और तथाकथित अभिजात्यीय दंभ में चूर ,भारत के सामान्य जन जीवन को क़ीट पतंगों से अधिक नही समझती ! विकास और प्रगति की समस्त सम्भावनाएँ ,इसके आक्टोपसी पंजों में छटपटा कर दम तोड़ देती है !
भ्रष्ट प्रशिक्षण शैली में पनपता ,राजनीति के कुचक्र में फंसा हमारा' बहादुर पुलिस विभाग अफसर और विधायको के मनसूबो को पूरा करना ही अपना परम धर्म समझता है !नौकरशाही के समस्त कुचक्रों में उसका कनिष्ठ सहयोगी यह पुलिस विभाग ,काया की छाया सा क्रूरता में नित नये ,कीर्तमान स्थापित करता जा रहा है ! जन अपेक्षाओं को इसने अपने दुष्कृत्यों से हमेशा निराश किया है ! आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था के इन सजग पहरेदारो ने ,थाने की चार दिवारी को चम्बल की सीमा बना दिया है !जनमानस में आतंक का पर्याय और उसे प्रोत्साहन देने वाला यह विभाग ,पद के दुरुपयोग को अपना जन्म सिद्ध अधिकार मानता है !
देश की जर्जर शैक्षिक व्यवस्था ,भी मात्र लिपिक वर्ग का निर्माण करने में सक्षम है ! ज्ञानार्जन की बौद्धिक और आत्मिक उर्जस्विता प्रदान करने वाली मूल चेतना ,वर्तमान प्रणाली में लुप्त हो चुकी है ! यह शिक्षा न जीविकोपार्जन का उद्देश्य ही पूर्ण रूप से पूरा कर पाती है ,और न चिंतन शक्ति के शाश्वत मूल्यों के उत्कर्ष में ,सहायता दे पाती है ! भारतीय वांगमय के विशाल अक्षय कोष की अमूल्य ज्ञान संपदा से ,नवोदित पीढी सर्वथा वंचित है ! अनभिज्ञ है ! शिक्षा के क्षेत्र में बढते पाश्चात्य प्रभाव ने ,इस पीढी को ,उसकी धरती से,संस्कृति से ,गौरव से निर्वासित कर रखा है !हमारे देश के महिमा मंडित इतिहास की एक सुदीर्घ परम्परा रही है!विदेशियों के लगातार होते आक्रमण ने ,उनकी लुटेरा वृत्ति ने ,अपनी छद्म नीतियों की सफलता के लिए ,उसके निर्मल अध्याय में ,इतने प्रक्षिप्त अंश जोड़े कि उसका वास्तविक स्वरूप ही ,संदेह के कुहासे में अस्पष्ट रेखांकन सा निमग्न पडा रह गया ! आज आवश्यकता है ,उस लुप्त प्राय विस्मृत मनीषा के दैवी आवाहन की ,सुषुप्त मनश्चेतना के जागरण की ,पुरातन ,अतुलित ज्ञान भंडार के विशुद्ध अवलोकन की ! अध्ययन की ! तभी परिस्थितियों की विषमता ,और समस्याओ की जटिलता समाधान पा सकेगी ...गुंडा राज्य की ,वसूली अपहरण की ,राजनीति की, वापसी क्या संकेत करती है ?यही अर्धविकसित और अविकसित ,चेतना उनके विकृत निर्णय ,हमारे आमजन की भाग्य रेखा बन जाते है !राजनैतिक उदासीनता की मूर्छना के साथ ,क्षुब्ध जन मानस अपने हितो को,विश्वासों को लुटते देख रहा है !
आज हमे उन सभी एकाधिकार वादी ताकतों के खिलाफ लोहा लेने के लिए कृत संकल्प होना होगा ,जो जीवन के अधिकार को ,उसकी सरल स्वाभाविक धारा को ,अवरुद्ध करने का प्रयास करेंगी !अनुचित हस्तक्षेप को किंचित मात्रभी न सहने की आदत डालनी होगी !हमारा सौभाग्य तभी लौट सकेगा ,जब हम अंधे ,गूँगे ,बहरे न रह कर ,सजग चेतन प्रबुद्ध नागरिक की भूमिका सम्पादित करेंगे ! अधिकारो के उपभोग का भी हम स्वामित्व तभी चाहे  ,जब हमारी प्रखर शक्ति उसे ग्रहण कर पाने में सुयोग्य हो !पहले अपने कर्तव्यो का दृढता से निर्वहन करना हमे सीखना है !आज देश को फिर किसी गाँधी,गौतम और विवेकानंद की जरुरत है !आज देश फिर किसी बड़ी क्रांति की जमीन तैयार कर रहा है !सुलगता जन मानस ,निकट भविष्य में कोई नई संचेतना अवश्य गढेगा !विकास का ,विश्वास का !

Sunday 8 September 2013

चल॓ जो पग थक॓ नही थक॓ जो पग चल॓ नही. पुकारती है आधियाँ. पुकारता है झझँवात.. सियाहियो स॓ लड. रहा हैरौशनी काजलपृपात/ पृलय भल॓ ही मोड. पर . खडा. हो राह रोक कर. न रुक सक॓ हजार सर. सहसत्र अगनि पुजँ म॓.. ढला दलित काअश्रुपात./ बढ, रहा है चीरन॓ को,ऊचँ नीच पक्षपात/ धरा क॓पुत्र मर रह॓ है ख॓तियाँ सुलग रही/ है भुखमरी म॓ॱ बैल हल खडी. फसल धधक रही, न अब सह॓ग॓ॱ रकतपात काल का कराल घात. असिथयोँ को चूर कर चुका भल॓ हो वजृ पात,/ कयोँ न हम तन॓ रह॓ कयोँ झुुक॓ रुक॓ रह॓. नसोॱ नसो म॓ॱ है भवरँ . उबल रहा है मौन जवर. दमन का चकृ तो कर .निकल रहा है .नव पृभात. सुबह क॓ नमृ सव॓द स॓ मिट॓ निशा का सनिनपात// #Hindi

Friday 6 September 2013

सुरमई वो धूप वाले दिन गए , रंग भीगे बादलो के दिन गए , घोसला चिरिया का खाली हो गया , तोतली बातो भरे वे दिन गए , कर्ज से भी सूद महंगा हो गया , आदमी कितना कमीना हो गया ,, खेत फिर इस साल बोये बिन गए , धान की फसलो के? छिन गए . झुरमुटो में कैद चुटकी क़ चांदनी , बांसुरी में घुट रही है रागिनी , खोखले सन्दर्भ भाषा के हुए . , छंद के गीतों भरे वे दिन गए

शहीदो की यादम॓ रोताहै कौन/ द॓श को नीलाम,कर सोता है कौन/ हद स॓ नीच॓ गिर चुका है आदमी/ दुरदशा क॓ बीजखुद बोता है कौन/ #Hindi

कागजी रिश्ते निभाना गया है , मुश्किलें खुद ही बढ़ाना आगया है ! दर्द पीकर मुस्कराते इन लबो को , वक्त की कीमत चुकाना आ गया है ! ki ,

कागजी रिश्ते निभाना गया है   

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वक्त की कीमत चुकाना आ गया है !





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Thursday 5 September 2013

पूस की रात

याद है फूस की उस झोपरी मे पूस , की वह रात याद  है  , लेता उबासी बादलो  के बीच , छुपता चाँद , तेज झोको में दीवारों  से सटे माँ  के तन से कुनमुनाते , भूख  से लिपटे  हुए  दो हाथ ,! याद है , उस मेह   में , भीगे  बदन , नीलाम  होती  औरतो  की लाज ! चार दाने  भात के और भर पतीला  आस ! धान  की उन किनकियो  में अनकही  फरियाद , याद है , वे अधपकेसे खोलते  जज्बात ! कपकपाते  कोहरे  में ठण्ड से  अकड़े  हुए , अधफटे  उन कथरियो  से , पांव  बाहर  झांकते ! याद  है बेबस  पिता की कोटरों मे  धंस  गई दो आँख ! याद  है फूस की उस झोपडी  में पूस की वह रात !,

मन की बात

बात शुरू होती है जिज्ञासु  मन से , जो अखबारों  के विचलित  कर देने वाले समाचारों से , उदगिन होकर प्रातक्रिया देते देते कब गंभीर विषयों पर , आलेख लिखने लगा , पता नहीं लगा पर उससे बुद्घि संतुष्ट हुई ,  हर्दय नहीं संवेदनाओ  को बहने के लिए एक आकाश चाहिए था , सो वे कविताओ के रूप में ढल  ढल कर बहने लगी पर कहने के लिए तो और भी बहुत कुछ था ! इतने से ही आसमान मुठ्ठी में करना नहीं हो सकता था होंसलो की उडान  अभी बाकी थी , धीरे धीरे बहुत कुछ  देखा और भोगा  हुआ सच कोशिशो की दहलीज पर आकर लेने लगा तब भी पूरी बात कहने के लिए मेरे मेरे पास समय मिलने पर आगे भी कहना बहुत कुछ  है

टीचर्स डे !!!

टीचर्स डे पर बधाई हिंदी को जो , पूर्ण समर्पित है हिंदी के पुरोधा लेखको की छाया में छोटे लेखक जो कभी आगे की पक्ति  के लेखक नहीं बन पाएंगे बल्कि  उनकी पुस्तको को पढ़ा ही नहीं जायेगा और यह मान लिया जायगा की , वे कचरा लिखते है पुरस्कार  सम्मान सब बहुत दूर की बात है वे तो अपनी पहचान तक को जीवन  भर तरस जाते है हिंदी के उन सभी तिरस्कृत हिंदी सेवियों को सलाम ! जो हिंदी से रोज़ी रोटी तो नहीं कमा पाय  पर कभी हिंदी उनकी ऒर एक  बार निहार ले इस चाहत को , जीवन भर चाहते रहे वे बेचारे अपनी पहचान अपनी जगह , भी नहीं जान  पाय पर हिंदी को अपनी माँ अंतिम साँस तक मानते रहे उन्हें सलाम !