बात शुरू होती है जिज्ञासु मन से , जो अखबारों के विचलित कर देने वाले समाचारों से , उदगिन होकर प्रातक्रिया देते देते कब गंभीर विषयों पर , आलेख लिखने लगा , पता नहीं लगा पर उससे बुद्घि संतुष्ट हुई , हर्दय नहीं संवेदनाओ को बहने के लिए एक आकाश चाहिए था , सो वे कविताओ के रूप में ढल ढल कर बहने लगी पर कहने के लिए तो और भी बहुत कुछ था ! इतने से ही आसमान मुठ्ठी में करना नहीं हो सकता था होंसलो की उडान अभी बाकी थी , धीरे धीरे बहुत कुछ देखा और भोगा हुआ सच कोशिशो की दहलीज पर आकर लेने लगा तब भी पूरी बात कहने के लिए मेरे मेरे पास समय मिलने पर आगे भी कहना बहुत कुछ है
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