Sunday, 8 September 2013

चल॓ जो पग थक॓ नही थक॓ जो पग चल॓ नही. पुकारती है आधियाँ. पुकारता है झझँवात.. सियाहियो स॓ लड. रहा हैरौशनी काजलपृपात/ पृलय भल॓ ही मोड. पर . खडा. हो राह रोक कर. न रुक सक॓ हजार सर. सहसत्र अगनि पुजँ म॓.. ढला दलित काअश्रुपात./ बढ, रहा है चीरन॓ को,ऊचँ नीच पक्षपात/ धरा क॓पुत्र मर रह॓ है ख॓तियाँ सुलग रही/ है भुखमरी म॓ॱ बैल हल खडी. फसल धधक रही, न अब सह॓ग॓ॱ रकतपात काल का कराल घात. असिथयोँ को चूर कर चुका भल॓ हो वजृ पात,/ कयोँ न हम तन॓ रह॓ कयोँ झुुक॓ रुक॓ रह॓. नसोॱ नसो म॓ॱ है भवरँ . उबल रहा है मौन जवर. दमन का चकृ तो कर .निकल रहा है .नव पृभात. सुबह क॓ नमृ सव॓द स॓ मिट॓ निशा का सनिनपात// #Hindi

Friday, 6 September 2013

सुरमई वो धूप वाले दिन गए , रंग भीगे बादलो के दिन गए , घोसला चिरिया का खाली हो गया , तोतली बातो भरे वे दिन गए , कर्ज से भी सूद महंगा हो गया , आदमी कितना कमीना हो गया ,, खेत फिर इस साल बोये बिन गए , धान की फसलो के? छिन गए . झुरमुटो में कैद चुटकी क़ चांदनी , बांसुरी में घुट रही है रागिनी , खोखले सन्दर्भ भाषा के हुए . , छंद के गीतों भरे वे दिन गए

शहीदो की यादम॓ रोताहै कौन/ द॓श को नीलाम,कर सोता है कौन/ हद स॓ नीच॓ गिर चुका है आदमी/ दुरदशा क॓ बीजखुद बोता है कौन/ #Hindi

कागजी रिश्ते निभाना गया है , मुश्किलें खुद ही बढ़ाना आगया है ! दर्द पीकर मुस्कराते इन लबो को , वक्त की कीमत चुकाना आ गया है ! ki ,

कागजी रिश्ते निभाना गया है   

, मुश्किलें खुद ही  बढ़ाना आगया है ! दर्द पीकर मुस्कराते इन लबो को ,

वक्त की कीमत चुकाना आ गया है !





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Thursday, 5 September 2013

पूस की रात

याद है फूस की उस झोपरी मे पूस , की वह रात याद  है  , लेता उबासी बादलो  के बीच , छुपता चाँद , तेज झोको में दीवारों  से सटे माँ  के तन से कुनमुनाते , भूख  से लिपटे  हुए  दो हाथ ,! याद है , उस मेह   में , भीगे  बदन , नीलाम  होती  औरतो  की लाज ! चार दाने  भात के और भर पतीला  आस ! धान  की उन किनकियो  में अनकही  फरियाद , याद है , वे अधपकेसे खोलते  जज्बात ! कपकपाते  कोहरे  में ठण्ड से  अकड़े  हुए , अधफटे  उन कथरियो  से , पांव  बाहर  झांकते ! याद  है बेबस  पिता की कोटरों मे  धंस  गई दो आँख ! याद  है फूस की उस झोपडी  में पूस की वह रात !,

मन की बात

बात शुरू होती है जिज्ञासु  मन से , जो अखबारों  के विचलित  कर देने वाले समाचारों से , उदगिन होकर प्रातक्रिया देते देते कब गंभीर विषयों पर , आलेख लिखने लगा , पता नहीं लगा पर उससे बुद्घि संतुष्ट हुई ,  हर्दय नहीं संवेदनाओ  को बहने के लिए एक आकाश चाहिए था , सो वे कविताओ के रूप में ढल  ढल कर बहने लगी पर कहने के लिए तो और भी बहुत कुछ था ! इतने से ही आसमान मुठ्ठी में करना नहीं हो सकता था होंसलो की उडान  अभी बाकी थी , धीरे धीरे बहुत कुछ  देखा और भोगा  हुआ सच कोशिशो की दहलीज पर आकर लेने लगा तब भी पूरी बात कहने के लिए मेरे मेरे पास समय मिलने पर आगे भी कहना बहुत कुछ  है

टीचर्स डे !!!

टीचर्स डे पर बधाई हिंदी को जो , पूर्ण समर्पित है हिंदी के पुरोधा लेखको की छाया में छोटे लेखक जो कभी आगे की पक्ति  के लेखक नहीं बन पाएंगे बल्कि  उनकी पुस्तको को पढ़ा ही नहीं जायेगा और यह मान लिया जायगा की , वे कचरा लिखते है पुरस्कार  सम्मान सब बहुत दूर की बात है वे तो अपनी पहचान तक को जीवन  भर तरस जाते है हिंदी के उन सभी तिरस्कृत हिंदी सेवियों को सलाम ! जो हिंदी से रोज़ी रोटी तो नहीं कमा पाय  पर कभी हिंदी उनकी ऒर एक  बार निहार ले इस चाहत को , जीवन भर चाहते रहे वे बेचारे अपनी पहचान अपनी जगह , भी नहीं जान  पाय पर हिंदी को अपनी माँ अंतिम साँस तक मानते रहे उन्हें सलाम !