Monday, 11 March 2013

"फागुन"

रंगों के इन्द्रधनुष बिखरे
मौसम ने जब खोली पलकें
   
             गीतों के फिर आँचल संवरें
             फागुन  ने फिर गूँथी अलकें

बिंदिया से पायल तक गोरी
भीगी चूनर भीगी चोली

             भीगा अम्बर भीगी धरती
             बासन्ती हवा रचाती जैसे रंगोली

मधुकलश छलकते छंदों के
फूले  पलाश जैसे वन के

             राधा के अरुण कपोलों से
             मधुशाला का गठबंधन है

मन की छोटी सी बस्ती का
कोना कोना वृन्दावन है

             पनघट है यमुना का जल है
             किस्से हैं रस के केसर के


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