यहाँ सूरज मद्धम हो जाता ,
चुपके से चाँद निकलता है ,
बिंदास गोमती का पानी ,
लहरों पर शहर मचलता है ,
बांगों का और फव्वारों का ,
स्वादों का और लिबासों का ,
रेशम के दस्तरखानों का ,
है जश्नें शौक नवाबों का ,
तहजीबों और तमीजों का ,
यह शहर शाम से जगता है ,
रौनक बाजारों की बढती ,
जैसे जैसे दिन ढलता है ,
उन्माद खरीददारी का हो ,
या फिर गंजिंग की हो मस्ती ,
हर हाट महोत्सव के पीछे ,
पागल दीवानों की बस्ती ,
यहाँ ईद दिवाली रोज मने ,
पर बैर न मन में पलता है ,
कुछ कहने से यह शहर अभी ,
भी सौ सौ बार हिचकता है ,
मन्नत है कोई दुआओं की ,
जन्नत है कोई किताबों की ,
खुशबू की, और खयालों की ,
है एक तमन्ना ख़्वाबों की ,
'लखनऊ' इबादत लफ़्ज़ों की ,
बातों में शहर झलकता है ,
है एक सलीका जीने का ,
अफसाना कोई लगता है ।
चुपके से चाँद निकलता है ,
बिंदास गोमती का पानी ,
लहरों पर शहर मचलता है ,
बांगों का और फव्वारों का ,
स्वादों का और लिबासों का ,
रेशम के दस्तरखानों का ,
है जश्नें शौक नवाबों का ,
तहजीबों और तमीजों का ,
यह शहर शाम से जगता है ,
रौनक बाजारों की बढती ,
जैसे जैसे दिन ढलता है ,
उन्माद खरीददारी का हो ,
या फिर गंजिंग की हो मस्ती ,
हर हाट महोत्सव के पीछे ,
पागल दीवानों की बस्ती ,
यहाँ ईद दिवाली रोज मने ,
पर बैर न मन में पलता है ,
कुछ कहने से यह शहर अभी ,
भी सौ सौ बार हिचकता है ,
मन्नत है कोई दुआओं की ,
जन्नत है कोई किताबों की ,
खुशबू की, और खयालों की ,
है एक तमन्ना ख़्वाबों की ,
'लखनऊ' इबादत लफ़्ज़ों की ,
बातों में शहर झलकता है ,
है एक सलीका जीने का ,
अफसाना कोई लगता है ।
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