वक़्त सरपट दौड़ता रफ़्तार से ,
हम शिला के खंड से जड़ हो चले ,
पसलियों में दर्द सदियों के भरे ,
हम बियाबानो के बरगद हो चले ,
जर्रा-ज़र्रा सी इमारत ढह गयी ,
बेखबर हम नींद में सोते रहे ,
उम्र की बाजीगरी से कौन जीता ,
सब यहाँ एक दिन निशाने हो चले ,
दोस्तों को दुश्मनी से क्या मिला ,
एक नन्हा सा भरोसा हिल गया ,
हादसे शायद सफ़र में कम थे कुछ ,
वर्ना क्यूँ हम ही तुम्हारे हो चले ,
हम कहीं दाखिल कहीं खारिज हुए ,
हर मुक़दमे में हम ही मुजरिम हुए ,
ज़िन्दगी हर ज़रुरत जंग थी ,
और किताबों में करिश्मे हो चले ।
हम शिला के खंड से जड़ हो चले ,
पसलियों में दर्द सदियों के भरे ,
हम बियाबानो के बरगद हो चले ,
जर्रा-ज़र्रा सी इमारत ढह गयी ,
बेखबर हम नींद में सोते रहे ,
उम्र की बाजीगरी से कौन जीता ,
सब यहाँ एक दिन निशाने हो चले ,
दोस्तों को दुश्मनी से क्या मिला ,
एक नन्हा सा भरोसा हिल गया ,
हादसे शायद सफ़र में कम थे कुछ ,
वर्ना क्यूँ हम ही तुम्हारे हो चले ,
हम कहीं दाखिल कहीं खारिज हुए ,
हर मुक़दमे में हम ही मुजरिम हुए ,
ज़िन्दगी हर ज़रुरत जंग थी ,
और किताबों में करिश्मे हो चले ।